शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

चाँद

तुम चाँद हो
तुम तक पहुंचू
कोशिश मेरी 



तुमको पाना
कोशिश ऐसी जैसी
सीढी से चाँद

उदास ना हो
चाँद दूंगा मैं तुम्हे
तुम्हारा ही है


स्पर्श

स्वप्न हो तुम
डरता हूँ स्पर्श से
चले जाओगे



असीम शान्ति
अन्तहीन वेदना
अनूठा प्रेम



छू ही लूं तुम्हे
विलीन हो जाओगे
जी ही लूं तुम्हे



मन विकल
अंतिम स्पर्श तेरा
कैसा ये पल
 
 



धोखा नहीं मैं
सच तेरे दिल का 
खुद से पूछो

 

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

हाइकु प्रतियोगिता " आँसू "


दुख के साथी
सूख गये बहके
खोजूँ मैं आँसू

दिखते नहीं
कुछ उदास आँसू
जीवन भर

साहित्यिक मधुशाला - हाइकु कार्यशाला 18 dec 2013

कालरात्रि है
अनन्त अजर है
ये दिवा स्वप्न

 सब बिछड़े
जीवन संध्या साथी
मेरे सपने

मंगलवार, 10 सितंबर 2013

किसने दुनिया है खोई

जीवन की अंतिम बेला से पहले एक बार मैं आऊंगा
तेरे सारे शिकवे सुन के ही इस दुनिया से जाऊंगा 
तेरे अधरो की खामोशी,दिल की धड़कन औ मदहोशी
इन सब के इल्‍जामों सुन के ही सुख से मर पाऊंगा
सब कहते है तुम रहती हो खोई खोई
कोई ना जाने तुमको खो के किसने दुनिया है खोई

बुधवार, 4 सितंबर 2013

माँ

माँ की करुणा बहन का प्यार
रोटी की चाह मे छूटा घर द्वार
जिंदगी मे डुबोके खुद को ये दर्द भूल जायेंगे
माँ बाप को रुलाने की एक दिन सजा पायेंगे


रिश्ता

रिश्ता इससे कुछ अजीब हो गया
कैसा ये दर्द है जो इतना करीब हो गया 
ना मौत आती है ना जिंदगी जी जाती है
मेरा दुश्मन मेरा रकीब हो गया

संवेदना

बिखर रहा था मैं तुम्हारे खत के पुर्जे समेटते हुये .
टुकडो मे दर्द् था, स्याही में थी वेदना .
रोते हुये अक्षर और मरता हुया रिश्ता .
सब जाता रहे थे मुझसे संवेदना .

सोमवार, 2 सितंबर 2013

दर्द

अकेला था वो
अपनी मोहब्बत के साथ  जीने लगा
अकेला हुआ जब बेवफाई से
खामोश  दर्द के साथ  पल पल मरने लगा


जीवन साथी

पति पत्नी
एक गाड़ी के दो पहिये
जिंदगी की गाड़ी मे बैठे
मासूम बच्चे
कितना सच है
लेकिन भाग्य विधाताओं ने
कार के साथ लगाया
साइकिल का पहिया
और दे दी जिम्मेदारी
गाड़ी खीचने की
कार के पहिये के सपनो की उड़ान
बंध गयी धीमी गति मे
लेकिन स्वीकारी उसने काल नियती
दूसरे पहिये का साथ
रोके हमेशा आगे बढ़ने से
मजबूर होके
अपनी गति को प्रगति को
रोके कार का पहिया
अजीब है समय
अब कहाँ है वो जीवन के ईश्वर
जब कार का पहिया हाथ जोड़े
साइकिल के पहिये से बोले
आप चाहो तो मत घूमो
मैं अकेले खीच लूंगा जीवन की गाड़ी
लेकिन हे जीवन साथी
मुझे मत करो पंक्चर





शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

फिर दामिनी

फिर दामिनी
रो रही मानवता
नकारा हम
जल रही वो
उसकी वेदना पे
वाद विवाद
जलेगा अब
पल-पल जीवन
मौन रुदन 

संवेदनाए
इधर उधर से
घाव कुरेदें
 
 

बुधवार, 21 अगस्त 2013

----गीता ज्ञान----


हे कृष्ण
ये गीता ज्ञान
कर्म करो
फल की इच्छा नहीं
किन्तु
यदि कर्म फल चाह  नहीं
फिर क्यों ये कर्म युद्ध
छिपी नहीं क्या इसमें चाह
चाह राज करने की
जीवन यदि नश्वर
फिर क्यों युद्ध
नश्वर शरीरो से
आत्मा अजर अमर
तो चलो उसी अजरता का
उल्लास मनाये
हे पार्थ सारथि
ये ज्ञान तो ले चला
संन्यास की ऒर
मौन कृष्ण
सोच रहे
काश दे पाता  मैं
राधा को गीता ज्ञान
कृष्ण को पाने की व्याकुलता से
पाती मुक्ति
सिर्फ  प्रेम
प्रेम फल चाह  नहीं
यही है गीता ज्ञान
विचारते कृष्ण
क्यों रची ये सृष्टि
यदि सब नश्वर
तो फिर
क्यों ईश्वर.....................








बुधवार, 14 अगस्त 2013

महंगाई

दुखी समाज
खाली हुयी रसोई
महंगा प्याज


त्रस्त जनता
प्याज आंसू रुलाये
भूखी सो जाये



रोते किसान
गरीब है बर्बाद 
देश आजाद 


जन संदेश 
फिर आये आजादी
हमारे  देश

सवाल

मौन समन्दर
खामोश लहरें
सहमी चांदनी
कुछ सुनने की कोशिश करते 
गुमसुम  देखते
रेत  के टीले
नम आँखों में
थे जो सपने सीले सीले
उदास सोचते सब
मासूम सपनो का
कातिल है  कौन
ये रास्ता
ये पेड़ ये हवा
धूप छाँव ये जीवन  की
पूछती मंजिले
सारी  कायनात  
शाम की बारिश  में
जो साथी था छूटा
उसके सपनो का
कातिल है कौन


    


शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

तारे रोते हुए

एक तपिश
आती जाती हवा में 
बदन को छुए 
दूर कही सरहद पे
लाशो के गुमनाम ढेर
जलते हुए…….
खाली आँखों में पले    
जीवन के सपने
आंसुओ से खाली हुए
लगते है जैसे 
दूर कही आसमां में 
कुछ तारे रोते हुए,..........




कवि

कवि का घर
खाली पेट रचना
तृप्ति जीभर


मेघ गर्जन
टूटी छत के नीचे
काव्य स्रजन

इंतजार

नदी किनारे
बरगद की शाखें 
कितनी प्यासी


ओस की बूंदे
पत्तियों पे ठहरीं
बाट जोहतीं


झूले तो पड़े
उनको खाली देखा
आंसू आ  गिरे


  



बुधवार, 31 जुलाई 2013

नदियाँ मेरु धरती वन

नदियाँ  रोई
आंसुओ का सैलाब
हर तरफ

अनसुनी की
वनों की वो पुकार 
अब चीत्कार ?


मेरु की मौत
बेखबर दुनिया
सूखा भविष्य

तपे धरती
हमारे शीतगृह
ताप बढ़ाएं

बुढापा

बढे हो गए   
अपने को संभालो
हम तो चले



तुमको सींचा
ज्यों तुम फूले फले. 
मुझे भुलाया


जीवन शांति 
रेत में खोयी सुई
ताउम्र खोजी


सोमवार, 22 जुलाई 2013

- दिशाहीन -

 दिशाहीन मै
बुलाती सूनी राह
 मौत की ओर.




जीवनसंध्या
सोचते रहे बस
क्या बीत गया

- प्रकृति-






 मौन प्रकृति
सहमी सी सोचती
हत्यारा कौन




हुआ  विकास
रोई  प्रकृति और 
किया  विनाश


 

शुक्रवार, 14 जून 2013


माँ का आँचल 
तपते जीवन में
ओस की बूंदे 
छुआ  आकाश
छूट गयी धरती
मौन रुदन




वो कलाकार 
कंगाल है जीवन
कला की मौत







रविवार, 9 जून 2013

अपराधबोध

तुम क्यों नहीं हो मेरे साथ
माना कि मैं
नहीं  निरपराध
मगर
सजा और भी कुछ हो सकती थी
मन छोटा नहीं था
मेरा अपराध
लेकिन
ये अलगाव
जितना दर्द भरा
उससे ज्यादा दर्द भरा ये अहसास
तुम तिल तिल कर जल रहे होगे
क्यों कि
तुम भी नहीं हो मेरे साथ

बुधवार, 29 मई 2013

हाइकु कविताये ----विनय कुमार

रोई गौरैया 
उदास उड़ चली
सूना घोंसला



सूरज डूबा
अंधकार की सत्ता
हारा  प्रकाश



मौन थे आँसू
खामोश थी नियति
ये कैसे  हुआ




                                                                                                                      29 may 2013 (bhopal)