हे कृष्ण
ये गीता ज्ञान
कर्म करो
फल की इच्छा नहीं
किन्तु
यदि कर्म फल चाह नहीं
फिर क्यों ये कर्म युद्ध
छिपी नहीं क्या इसमें चाह
चाह राज करने की
जीवन यदि नश्वर
फिर क्यों युद्ध
नश्वर शरीरो से
आत्मा अजर अमर
तो चलो उसी अजरता का
उल्लास मनाये
हे पार्थ सारथि
ये ज्ञान तो ले चला
संन्यास की ऒर
मौन कृष्ण
सोच रहे
काश दे पाता मैं
राधा को गीता ज्ञान
कृष्ण को पाने की व्याकुलता से
पाती मुक्ति
सिर्फ प्रेम
प्रेम फल चाह नहीं
यही है गीता ज्ञान
विचारते कृष्ण
क्यों रची ये सृष्टि
यदि सब नश्वर
तो फिर
क्यों ईश्वर.....................