बुधवार, 31 जुलाई 2013

नदियाँ मेरु धरती वन

नदियाँ  रोई
आंसुओ का सैलाब
हर तरफ

अनसुनी की
वनों की वो पुकार 
अब चीत्कार ?


मेरु की मौत
बेखबर दुनिया
सूखा भविष्य

तपे धरती
हमारे शीतगृह
ताप बढ़ाएं

बुढापा

बढे हो गए   
अपने को संभालो
हम तो चले



तुमको सींचा
ज्यों तुम फूले फले. 
मुझे भुलाया


जीवन शांति 
रेत में खोयी सुई
ताउम्र खोजी


सोमवार, 22 जुलाई 2013

- दिशाहीन -

 दिशाहीन मै
बुलाती सूनी राह
 मौत की ओर.




जीवनसंध्या
सोचते रहे बस
क्या बीत गया

- प्रकृति-






 मौन प्रकृति
सहमी सी सोचती
हत्यारा कौन




हुआ  विकास
रोई  प्रकृति और 
किया  विनाश