हाइकु कविता , कविता ,ग़ज़ल, कहानी
बुधवार, 4 सितंबर 2013
संवेदना
बिखर रहा था मैं तुम्हारे खत के पुर्जे समेटते हुये .
टुकडो मे दर्द् था, स्याही में थी वेदना .
रोते हुये अक्षर और मरता हुया रिश्ता .
सब जाता रहे थे मुझसे संवेदना .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें